अति महत्वपूर्ण
सेवा में, 2 अप्रैल, 2020
माननीय अध्यक्ष महोदय,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली |
महोदय,
आपका ध्यान दिनांक 31 मार्च, 2020 के ऑनलाइन समाचार पोर्टल “www. hindi.newsclick.in” के इस खबर “बुंदेलखंड की सुनो : 'सरकार क़हत कुछ है करत कुछ” की ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ | रामलली कहती हैं कि समाचार में कह रहे थे कि सब्जी की दुकानें खुलेंगी, पर हम जैसे गरीबों की नहीं बड़े व्यापारियों की खुल रही हैं, मेरे सामने तो अब अँधेरा है की क्या करूँ? कैसे बच्चों को पेट पालूँगी? ये स्थिति केवल रामलली की ही नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड के हर मजदूर की हालत इतनी ही ज्यादा खराब है। लॉकडाउन के बाद से जहां दुकानें खुलना बंद हो गई हैं, वहीं गरीब मजदूर अपना पेट पालने के लिए परेशान हैं। ऐसा ही एक किस्सा मानिकपुर की गायत्री का है। गायत्री के पाँच बच्चे हैं, पति के जाने के बाद बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी गायत्री की है। गायत्री कहती हैं कि, 'खेती-किसानी करके अपने बच्चों का पेट पालती हूँ, लेकिन इस बीमारी की वजह से कोई काम नहीं हो पा रहा है, दिन-रात यही चिंता है कि 'कैसे बच्चों का पेट पालें।'
अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया इस मामले को संज्ञान में लेते हुए अविलम्ब न्यायोचित कार्यवाही करने हेतु सम्बंधित अधिकारियो को निर्देशित करने की कृपा करे | जिससे इन सभी परिवारों के घरो में भी खाने पीने और आवश्यकता की वस्तुए उनके जीवित रहते पहुच सके |
संलग्नक :
भवदीय
डा0 लेनिन रघुवंशी
सीईओ
मानवाधिकार जननिगरानी समिति
+91-9935599333
रामलली कहती हैं कि समाचार में कह रहे थे कि सब्जी की दुकानें खुलेंगी, पर हम जैसे गरीबों की नहीं बड़े व्यापारियों की खुल रही हैं, मेरे सामने तो अब अँधेरा है की क्या करूँ? कैसे बच्चों को पेट पालूँगी?
02 Apr 2020
चित्रकूट : मिट्टी के घर के दरवाजे पर बैठी रामलली की आँखों में आँसू भरे हुए हैं, वो अपने परिवार को पालने के लिए परेशान है। रामलली कहती हैं, 'मैं करीब पिछले बीस साल से कर्वी में सब्जी बेचने का काम करती हूँ। मेरा पति दस साल से लापता है, इसलिए अपने पांच बच्चों का पेट पालने के लिए मैं खुद ही सब्जी बेचने लगी ताकि अपने परिवार को दो जून की रोटी खिला सकूँ।' अपने आँखों से आँसू पोछते हुए रामलली कहती हैं, 'सरकार पहले अतिक्रमण हटवाने में लगी थी जिसके कारण मेरी दुकान इधर-उधर होती रही इस वजह से कमाई नहीं हो पाती और अब तो पता नहीं कौन सी बीमारी आ गई है जिसकी वजह से दुकान एकदम बंद है।' रामलली कहती हैं, 'सरकार क़हत कुछ है करत कुछ।' समाचार में कह रहे थे कि सब्जी की दुकानें खुलेंगी, पर हम जैसे गरीबों की नहीं बड़े व्यापारियों की खुल रही हैं, मेरे सामने तो अब अँधेरा है की क्या करूँ? कैसे बच्चों को पेट पालूँगी?
ये स्थिति केवल रामलली की ही नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड के हर मजदूर की हालत इतनी ही ज्यादा खराब है। लॉकडाउन के बाद से जहां दुकानें खुलना बंद हो गई हैं, वहीं गरीब मजदूर अपना पेट पालने के लिए परेशान हैं। ऐसा ही एक किस्सा मानिकपुर की गायत्री का है। गायत्री के पाँच बच्चे हैं, पति के जाने के बाद बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी गायत्री की है। गायत्री कहती हैं कि, 'खेती-किसानी करके अपने बच्चों का पेट पालती हूँ, लेकिन इस बीमारी की वजह से कोई काम नहीं हो पा रहा है, दिन-रात यही चिंता है कि 'कैसे बच्चों का पेट पालें।'
विश्वभर में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। भारत में ही संक्रमित लोगों की संख्या 2000 से ज़्यादा हो गई है और मरने वालों की संख्या 50 के पार।
बद से बदतर होती मजदूरों की ज़िंदगी
देशभर में लॉकडाउन तो घोषित कर दिया गया है, लेकिन लॉकडाउन से पहले सरकार ने उन लोगों का बिलकुल ख्याल नहीं रखा जो एक राज्य से दूसरे राज्य रोजी-रोटी की तलाश में गए होते हैं। गरीब, मजदूर, जो आजीविका की तलाश में कहीं जाकर बस जाते हैं उनका क्या होगा? अचानक हुए लॉकडाउन के बाद इन्हें पैदल अपने गाँव की ओर चलने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके डरावने नतीजे सामने आ रहे हैं।
भूख-प्यास की परवाह किए बगैर पैदल ही अपने-अपने गांवों की ओर निकले कई लोगों को जान तक गंवानी पड़ गई। किसी को ट्रक-टैम्पो ने टक्कर मार दी, तो किसी ने चलते-चलते दम तोड़ दिया। अब तक 29 मजदूरों समेत 34 लोगों की जान जा चुकी है।
पीएम ने कहा: रखें सामाजिक दूरी
देश में कोरोना महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया, उसके बाद 24 मार्च को अगले 21 दिनों के लिए पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। अपने विशेष संदेश में प्रधानमंत्री ने खुद कहा कि 'जिन देशों के पास सबसे बेहतर मेडिकल सुविधाएं हैं, वे भी इस वायरस को रोक नहीं सके और इसे कम करने का उपाय केवल सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी है।'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'आधी रात से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन हो जाएगा, लोगों को 21 दिनों के लिए उनके घरों से बाहर निकलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और दूसरे देशों के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए 21 दिन आवश्यक हैं।'
खाना पीना भी हो गया है बंद
बुंदेलखंड के गाँव की कुछ महिलाएं बातचीत में बताती हैं कि, 'हम सब तो इस बीमारी का नाम भी पहली बार सुने हैं, कर्फ़्यू से पहले कभी इस महामारी के बारे में कभी नहीं सुने थे।' वहाँ बैठी एक चिंता नाम की एक बुजुर्ग महिला कहती हैं, 'हमारी इतनी उम्र हो गई है कभी भी इस तरह की महामारी हमारे सामने नहीं आई है जिस में सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा है लेकिन अब तो हद हो गई है हम लोगों का खाना पीना भी बंद हो गया है, 'हम ही जानते हैं की कैसे दिन बीत रहे हैं। हम सब तो रोज की मजदूरी करने वाले लोग हैं।'
मिड डे मील हो गया है बंद
चित्रकूट जिले के शिवरामपुर के सूरज और कमला बताते हैं, 'हम लोगों को पहले तो मालूम ही नहीं था कि सरकार यह क्या कर रही है, क्यों बच्चन के स्कूल को बंद कर रही है, धीरे-धीरे बस इतना मालूम चला है कि कोई बीमारी फैली हुई है, इसलिए घर के अंदर रहना है। हम घर के अंदर तो हैं, स्कूल भी बंद है और हमारा काम भी, बच्चों का खिलाएँ, खुद का खाएं।'
बुंदेलखंड जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, ज़्यादातर बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील खाना उनके आहार और दिनचर्या का एक अहम हिस्सा होता है लेकिन लॉकडाउन में स्कूल बंद होने की वजह बच्चों को वो भोजन नहीं मिल रहा है। मार्च के महीने में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई, लेकिन केरल जैसे राज्य को छोड़ दें कोई भी राज्य इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है।
लॉकडाउन करने से पहले क्या सरकार इन बच्चों के बारे में नहीं सोचना चाहिए था जिन्हें स्कूल में पढ़ाई के साथ पौष्टिक आहार भी दिया जाता है, बच्चे जो स्कूल से यह उम्मीद भी लगाए रहते थे कि एक वक्त भोजन मिल सके, या उनके किसान, गरीब, मजदूर माता-पिता को ये भरोसा रहे के उसके बच्चे को स्कूल में खाना मिलेगा। जो बच्चा स्कूल के भोजन में भरपेट खाता था उसकी भूख का क्या? उसके माता-पिता का काम तो वैसे ही बंद है। ऐसे परिवार और बच्चे क्या करें?
सरकार पर निकाल रहे हैं गुस्सा
चित्रकूट जिले के कर्वी के शमीम बानो मुर्गा व्यापारी हैं, शमीम सरकार पर जमकर अपनी नाराजगी निकाल रहे हैं। शमीम कहते हैं, 'इस बीमारी में मेरा सारा धंधा चौपट हो गया है, जहाँ मुर्गा 120 और 150 रुपए किलो की कीमत से बिकता था वही इस समय 30-40 किलो बिक रहा है। बस किसी तरह पेट चला रहे हैं फायदा कुछ नहीं है पशु चिकित्सकों ने जाँच भी किया है, किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है, मुर्गा खा सकते हैं। लेकिन अफवाह फैला दिया गया है कि मुर्गा खाने से कोरोना हो रहा है, जिसकी वजह से हम जैसे लोगों का कितना नुकसान हो रहा है।
बता दें कि, करीब महीने भर पहले से यह अफवाह फैली है कि कोरोना चीन से आई हुई बीमारी है, मुर्गा और मुर्गा का चारा भी चीन से आता है, इसलिए मुर्गा नहीं खाना चाहिए नहीं तो कोरोना हो जाएगा, यह बात ग्रामीण क्षेत्रों में जंगल में आग की तरह फैल गई और लोगों ने मुर्गे से दूरी बनानी शुरू कर दी, हालांकि जगह-जगह के पशु चिकित्सकों ने कहा कि ऐसा नहीं है लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा और मुर्गा व्यापारियों, दुकानदारों का खूब नुकसान हो रहा है।
पैड और मास्क की हो रही है दिक्कत
मऊ कस्बे के कुछ लोगों का कहना है की प्रशासन ने यह कह दिया है कि लोगों को डोर-टू-डोर सामान पहुंचाएगा, आज एक अप्रैल हो गया है अभी तक किसी भी तरह का कोई खाने की सामाग्री प्रशासन की तरफ से नहीं भेजा गया है, ना ही लोगों को मास्क आदि का को इंतजाम किया गया है। मेडिकल के दुकान पर मास्क को लेकर भीड़ लगी हुई है, हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम 100-200 का मास्क खरीद लें। इतना ही नहीं, लड़कियों और महिलाओं को माहवारी के समय के लिए पैड के बिना दिक्कत हो रही हैं।
एक 25 साल की लड़की दरवाजे के पीछे से बोलती हैं कि ये हम लोगों को पता है कि यह बंदी तो हमारे जान के पीछे पड़ गई है। हमारे पास इतना पैसा नहीं है की इकठ्ठा खरीद सकें। हम लड़कियां और महिलाएं घर में एकदम पैक हो गये है मर्द तो फिर भी कुछ-कुछ देर को बाहर आते जाते हैं। कोई सामान भी ले आना हो तो कैसे ले आयें।
एक महिला बताती हैं कि घर में खाने को नहीं है, लेकिन सबको खाना चाहिए। सब लोग खाना भी तो घर की औरतों से मांगते हैं, हम क्या जवाब दें, अगर ना बोलते हैं तो मारपीट हो जाती है। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है लेकिन तब पुरुष लोग डांटकर चले जाते हैं, अब बाहर नहीं जातेे। घर में लड़ाई बढ़ ही रही है, हम लोगों को तो समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगह उनका घर है। महिलाओं पर सबसे ज्यादा हिंसा करने वाले उनके (महिलाओं के) जान-पहचान के लोग ही होते हैं।
यह अन्य लड़की सोशल मीडिया पर चल रहे महिलाओं के खिलाफ घटिया जोक्स पर तब्ज करते हुए कहती हैं कि इन सबके बावजूद हम महिलाओं को लेकर लोग फिजूल-फिजूल बातें करते हैं कि अब तो औरतों के बीच ही मर्दों को समय बिताना होगा, जैसा भी खाना देंगी खाना पड़ेगा, उनके सामने दबकर रहना पड़ेगा। ये सारी बातें सुन-सुनकर दिमाग खराब हो गया है, कुछ भी हो जाए इस देश में जोक्स और तंज़ महिलाओं पर ही होता है, गलती महिलाओं की ही निकाली जाती है।
फिक्र करने की जरूरत नहीं
चित्रकूट के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर विनोद कुमार यादव ने बताते हैं कि सरकार काम कर रही है, फिक्र की जरूरत नहीं है, मास्क और स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में पूछने पर डॉक्टर विनोद कुमार कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग ने मास्क मंगवाने की मांग सरकार से की है। हमारे जिले में कोरोना वायरस का कोई भी मरीज अभी तक नहीं मिला है।
स्वास्थ्य विभाग के अपर चिकित्सा अधिकारी रमाकांत चौरीहा कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को अभी तक मास्क नहीं मिले हैं तो हम आम जनता को कहाँ से उपलब्ध करा दें। रमाकांत चौरीहा कहते हैं, 'मेरा तो मानना है कि मास्क के बिना भी आप अपने आप को रुमाल या साफी बांध कर सुरक्षित रख सकते हैं।
रामनगर के एक बुजुर्ग व्यक्ति बताते हैं, 'हमारे यहाँ के रामवतार, बूदी, होरीलाल सूरत में बैटरी रिक्शा चलते थे, कोरोना के डर से भागकर आए हैं। सरकार कहती है कि कोई बाहर से आए तो उसकी जांच की जाये, लेकिन यहाँ पर तो कोई जांच नहीं हो रही है, इसलिए हम लोग बाहर से आए लोगों को गाँव में रहने से मना कर रहे हैं कि कोई बीमारी ना फैल जाए, लेकिन अधिकारी उनकी जांच नहीं कर रहा है।'
मानिकपुर की पूर्व ग्राम प्रधान सँजो देवी कहती हैं, ' हमारे यहाँ प्रेमलाल नाम के एक व्यक्ति में कोरोना के लक्षण मिले थे, वो अपने परिवार के साथ हरियाणा से आया था, वहाँ पर मजदूरी का काम करता है, डॉक्टरों ने जांच की और उसे अस्पताल ले गए। अभी तक उसके बारे में मालूम नहीं है कि वो अस्पताल से आया या नहीं। डॉक्टर बोल रहे थे दो परसेंट कोरोना का लक्षण है।
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