अति महत्वपूर्ण
सेवा में, 1 अप्रैल, 2020
श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली |
महोदय,
आपका
ध्यान दिनांक 27 मार्च, 2020 के ऑनलाइन समाचार पोर्टल “द
वायर” के इस खबर “कोरोना: यूपी सरकार ने रोज़गार सेवकों का बकाया मानदेय दिए बिना संक्रमितों की
पहचान में लगाया” की ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ | उत्तर प्रदेश के 36 हज़ार रोज़गार सेवकों को 18 महीनों का मानदेय
नहीं मिला है, जो क़रीब 170 करोड़ रुपये होता है | बावजूद इसके उन्हें गांवों में आए प्रवासी कामगारों की पहचान के काम
में लगाया गया है | संक्रमण के जोख़िम के बीच न तो उन्हें मास्क और दस्ताने दिए गए हैं, न ही उनका बीमा कराया गया है |
28 मार्च
को गोरखपुर जिले के पतरा गांव के रोजगार सेवक 34 वर्षीय
रामअशीष चौहान की हार्ट अटैक से मौत हो गयी | उनको 18 महीने (वर्ष 2017-18 और 2019-20
का 9-9
माह) से मानदेय नहीं मिला था | दो
बेटे और तीन बेटियों के पिता रामअशीष तीन भाइयों में सबसे बड़े थे | उनके पिता
रामभवन मजदूरी करते हैं | परिजनों का कहना था कि आर्थिक तंगी के कारण रामअशीष गहरे
अवसाद में थे |
इसी महीने गोरखपुर जिले के रोजगार सेवक संघ के पूर्व
अध्यक्ष राकेश सिंह ने आत्महत्या
कर ली थी. उनका 13 महीने
का मानदेय बकाया था.
अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि अविलम्ब इन रोजगार सेवकों का बकाया मानदेय का भुगतान समय से किया जाए, हर महीने समय से वेतन देना सुनिश्चित किया
जाए, रोजगार सेवक की
मृत्यु पर उसके परिवार को दस लाख की आर्थिक सहायता, आश्रित को नौकरी, बीमार पड़ने पर इलाज के लिए पांच लाख की मदद दी जाए और
इन्हें अविलम्ब सभी जरुरत की किट जो कोरोना मरीज के जांच के लिए जरुरी हो उपलब्ध
कराने हेतु सम्बंधित अधिकारियो को निर्देशित करने की कृपा करे |
संलग्नक :
1.
ऑनलाइन समाचार पोर्टल
“द
वायर” का लिंक
भवदीय
डा0 लेनिन रघुवंशी
सीईओ
मानवाधिकार जननिगरानी समिति
+91-9935599333
उत्तर
प्रदेश के 36 हज़ार रोज़गार सेवकों को 18 महीनों का मानदेय नहीं मिला है, जो क़रीब 170 करोड़ रुपये होता है. बावजूद इसके उन्हें गांवों में आए प्रवासी कामगारों की पहचान के काम
में लगाया गया है. संक्रमण के जोख़िम के बीच न तो उन्हें मास्क और दस्ताने दिए गए हैं, न ही उनका बीमा कराया गया है.
महासंकट की इस घड़ी में उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है.
इनमें से हजारों कर्मचारी ऐसे हैं जिनसे कोरोना से जंग में काम भी लिया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश के 36 हजार
रोजगार सेवक ऐसे ही स्कीम वर्कर हैं, जिन्हें
18
महीने का मानदेय नहीं मिला है. उनका यूपी सरकार पर मानदेय
का बकाया 170 करोड़ होता है.
इस संकट की घड़ी में उनके बकाये का भुगतान किए बिना उन्हें
गांव-गांव आए प्रवासी कामगारों की पहचान और उनके बारे में रिपोर्ट तैयार करने के
काम में लगा दिया गया है.
इस कार्य के लिए उन्हें न तो सुरक्षा उपकरण-(मास्क, दस्ताने)
उपलब्ध कराए गए हैं न तो उनका बीमा कराया गया है जबकि इस कार्य में संक्रमण का
जोखिम है.
महज छह हजार रुपये महीना मानदेय पाने वाले रोजगार सेवकों को
वर्षों से समय से मानदेय नहीं मिलता रहा है. कम मानदेय और मानदेय बकाये ने उनकी
हालत खराब कर दी है.
तीन वित्तीय वर्षों का 18 महीने
का मानदेय न मिलने के कारण रोजगार सेवक बेहद आर्थिक तंगी और अवसाद में है.
हाल के महीनों में गोरखपुर, ऐटा, हाथरस, उन्नाव, कानपुर
देहात जिले के पांच रोजगार सेवकों ने आत्महत्या कर ली है. तीन रोजगार सेवक आर्थिक
तंगी के कारण ठीक से इलाज नहीं कराने के कारण बीमारी से मर गए हैं.
28
मार्च को गोरखपुर जिले के पतरा गांव के रोजगार सेवक 34 वर्षीय
रामअशीष चौहान की हार्ट अटैक से मौत हो गयी. उनको 18 महीने
(वर्ष 2017-18 और 2019-20 का 9-9 माह )
से मानदेय नहीं मिला था.
दो बेटे और तीन बेटियों के पिता रामअशीष तीन भाइयों में
सबसे बड़े थे. उनके पिता रामभवन मजदूरी करते हैं. परिजनों का कहना था कि आर्थिक
तंगी के कारण रामअशीष गहरे अवसाद में थे.
इसी महीने गोरखपुर जिले के रोजगार सेवक संघ के पूर्व
अध्यक्ष राकेश सिंह ने आत्महत्या कर
ली थी. उनका 13 महीने
का मानदेय बकाया था.
यूपी के 25 हजार रोजगार सेवकों को इस वित्तीय
वर्ष यानी 2019-20 का छह से आठ महीने का मानदेय बकाया है. इसी
तरह 32 हजार रोजगार सेवकों का 2017-18 और 2018-2019 का 8 से 10 महीने
का मानदेय बकाया है.
रोजगार सेवकों को वर्ष 2006 में
नियुक्त किया गया था. उनका काम अपने ग्राम पंचायत में मनरेगा मजदूरों की मांग पर
काम उपलब्ध कराना और ग्राम पंचायत व ब्लाक के अफसरों से तालमेल कर मजदूरी भुगतान
कराना है.
प्रदेश के हर ग्राम पंचायत में रोजगार सेवकों की नियुक्ति
की गई. प्रदेश में कुल 58,906 ग्राम पंचायत हैं. उस समय उन्हें 2,000 रुपये
मानेदय पर तैनाती की गयी.
फिर उनका मानदेय बढ़ाकर 3,500 हुआ.
अखिलेश सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाकर छह हजार रुपये कर
दिया.
उत्तर प्रदेश ग्राम रोजगार सेवक संघ के प्रदेश अध्यक्ष
भूपेश कुमार सिंह ने बताया कि 2006-2007 में 52 हजार
रोजगार सेवकों की तैनाती की गयी थी. बाद में तमाम रोजगार सेवकों को गलत तरीके से
निकाल दिया गया.
उन्होंने आगे बताया कि करीब 1400 ग्राम
पंचायतें शहरी सीमा में आ गयीं. इस कारण वहां रोजगार सेवकों को निकालकर पद खत्म कर
दिया गया. कम मानदेय के कारण बहुत से रोजगार सेेवक प्राइवेट नौकरी में चले गए और
इस तरह उनकी संख्या निरंतर घटती रही. आज उनकी संख्या सिर्फ 36 हजार
ही रह गयी है.
मनरेगा का समुचित संचालन के लिए हर पंचायत में रोजगार सेवक
होने चाहिए. प्रदेश में 22 हजार ग्राम पंचायतों में रोजगार सेवक नहीं
हैं. इसका प्रभाव मनरेगा के तहत रोजगार सृजन में पड़ता है.
ये पंचायतें रोजगार सेवकों की कमी के कारण मनरेगा का बजट
उपयोग में नहीं ला पाती हैं जिसका सीधा प्रभाव गरीब मनरेगा मजदूरों पर पड़ता है.
सिंह ने यह भी बताया
कि रोजगार सेवकों से मनरेगा के अलावा भी दूसरे कार्य बराबर लिए जाते है. कोई भी
सर्वे हो या ग्राम पंचायत स्तर पर कार्य हो, रोजगार
सेवकों को लगा दिया जाता है. इस तरह वे पूरे महीने काम में जुटे रहते हैं.
गोरखपुर जिले के पिपरौली ब्लाक में तैनात एक रोजगार सेवक ने
बताया कि तमाम ग्राम पंचायतों में सेक्रेटरी के पद रिक्त हैं. ऐसी स्थिति में उनसे
सेक्रेटरी के सारे काम कराए जाते हैं.
भूपेश सिंह ने कहा, ‘विपरीत
परिस्थितियों में भी रोजगार सेवकों ने अपना काम बेहतरीन तरीके से किया है. मनरेगा
मजदूरों के लिए अधिकतम रोजगार का सृजन कर यूपी में मनरेगा फंड के खर्च के टारगेट
को पूरा किया है. फिर भी उनका मानदेय बढ़ाने, बकाया मानदेय
का भुगतान करने, हर महीने समय से मानदेय देने की व्यवस्था 14 वर्ष
बाद भी सुनिश्चित नहीं हो सकी है.’
रोजगार सेवकों का दर्द है कि उनका मानदेय 200 रुपये
दिहाड़ी है जो मनरेगा मजदूर के ही बराबर है.
सिंह कहते हैं, ‘कोरोना
महामारी के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने मनरेगा मजदूरों के बकाये 611 करोड़
का भुगतान करने की घोषणा की है जो बहुत अच्छा कदम है लेकिन इसके साथ सरकार को यह
ख्याल नहीं आया कि रोजगार सेवकों का बकाया 170 करोड़
का भी भुगतान कर दिया जाए. आखिर उनकी स्थिति भी मनरेगा मजदूर की ही तरह है. संकट
की इस घड़ी में जब सब कुछ बंद है तो वे अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे?’
वर्ष 2019 के सितंबर महीने में रोजगार सेवकों
ने लखनऊ में अपना सम्मेलन किया जिसमें ग्राम्य विकास मंत्री आए. उन्होंने रोजगार
सेवकों की मांग माने जाने का आश्वासन दिया था.
रोजगार सेवकों की मांग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाए, बकाया
मानदेय का भुगतान समय से किया जाए, हर
महीने समय से वेतन देना सुनिश्चित किया जाए, रोजगार
सेवक की मृत्यु पर उसके परिवार को दस लाख की आर्थिक सहायता, आश्रित
को नौकरी, बीमार पड़ने पर इलाज के लिए पांच लाख की मदद दी जाए.
साथ ही उनकी समस्याओं को हल करने के लिए
जिले के स्तर पर ग्रीविएंस (शिकायत) कमेटी बनाई जाए.
इसी महीने की 18 तारीख
को इन मांगों के लेकर उत्तर प्रदेश ग्राम रोजगार सेवक संघ ने ग्राम्य विकास मंत्री
को मेमोरेंडम भेजा लेकिन अब तक उनकी कोई मांग पूरी नहीं हुई है.
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